छठ बीत गया..
बिहार,पूर्वी भारत का एक राज्य जहां छठ एक पर्व नहीं पहचान है. छठ को बीते हुए 3 दिन हो गए पर मैं न छठ पर घर जा सका और न ही जहाँ रहता हूं वहां कही भाग ले पाया.
जिस दिन छठ था उस दिन मैं नौकरी कर रहा था और मन ही मन एक सच्चाई को स्वीकार कर रहा था कि शायद अब मैं बड़ा हो गया हूं और मेरे ऊपर कुछ जिम्मेवारियां भी आ गई है. मन इस सच्चाई को स्वीकार करने को तैयार नहीं था तभी मेरे गांव के एक दोस्त का फ़ोन आया और उसने पूछा कि क्या तुम घर पर हो, मैंने बहुत ही धीमी आवाज में उसको जवाब दिया- नहीं.. इस आवाज को वो पहचान चूका था, दर्द को समझ गया था फिर उसने न गांव की बात की और न ही छठ की. क्योंकि दोनों मजबूर थे और जब मज़बूरी एक ही हो तो रोना क्या और परेशान क्यों होना. हम दोनों कुछ और बात करने लगे और फिर बात ख़त्म हो गई. उसके फ़ोन के बाद से मैं सोचने लगा कि छठ बिहार के लिए एक पर्व है या कुछ और ?
जवाब ढूंढने की कोशिश तो किया लेकिन ये सोचते सोचते मैं अपने गांव पहुच गया वो गांव जहा मैं हर साल छठ में हुआ करता था.
सच कहूं तो छठ क्या है और उसके क्या मायने है यह बात एक बिहार से दूर रहने वाले बिहारी से बेहतर कोई नहीं समझ सकता.
जैसे सारे पर्व कॉर्पोरेट के भेंट चढ़ गए है उस से छठ भी अछूता नहीं है. छठ के दो दिन पहले से न्यूज़पेपर ये बताने लगे कि इस बार छठ पर कितने का कारोबार होने वाला है और किस चीज पर कितना लोग खर्च करने वाले है. खैर ये तो दूसरा विषय है.
केरवा जे फरे ला धवध से जब बजने लगता है तब से लेकर जब तक यह बजना बंद नहीं हो जाता तब तक बिहार बिहार नहीं रहता है यह अमेरिका, लन्दन, बॉम्बे और कोलकाता हो जाता है और पूरा बिहार कुछ दिनों के लिए विश्व हो जाता है
चाचा, दादा, मामा और भैया इंजीनियर साहब, वीडियो साहब, डीएम साहब हो जाते है और पूरा का पूरा प्रशासनिक विभाग और सरकार बिहार के हर छठ घाट पर मौजूद मिलता है.
छठ हमे अपनों से मिलवाता है और इस पल का हम साल भर इंतजार करते है. छठ एक ऐसा मौका होता है जब हम उन सभी लोगों से मिलते है और जानते है की बड़का पापा के लइका का कर ता आ फलानि दीदी के कवना क्लास में एडमिशन भइल बा ??
छठ के समय आप विशिष्ट होते है और बिहार भी क्योकि छठ बहुत ही पवित्र और लोक आस्था का महान पर्व है. अभी तक मै छठ के बारे में यही समझ पाया हूं. शायद कुछ और साल बाद इस से कुछ बेहतर समझ सकु छठ के बारे में !