बात है दो हजार आठ की। कांग्रेस की सरकार ने दो साल लेट करके केंद्रीय कर्मचारियों को छठे वेतन आयोग का तोहफा दिया था। दो साल बाद मिले इस तोहफे ने सरकारी कर्मचारियों को मालामाल कर दिया था। क्योंकि साथ में दो साल पीछे से जोड़कर पैसा मिला था। टन्नू भैया के पापा भी केंद्रीय कर्मचारी थे। घर वालों को टन्नू भैया से बड़ी उम्मीदें थी। पैसा आया तो टन्नू भैया को जयपुर पढ़ने के लिए भेजा गया।
moving from one city to other this is why यायावर. a media worker. want to learn, know new thing. so, here on blog to learn, know and gain some knowledge.
Monday, November 14, 2016
Thursday, November 3, 2016
किसी खास के लिए आम रह कर जीना किताना मुश्किल है
बहुत मुश्किल हो जाता है उसके साथ जीना जिसके आप खास हो या कोई आपका खास हो। मुश्किल इसलिए कि आप अपनी तरह से या सामने वाला खुद की तरह से नहीं रहता। एक बनावटीपन आ जाता है दोनों के बीच में। बढ़ते रहने वाले समय के साथ इसको मिला के चलना एक बेहद ही मुश्किल टास्क हो जाता है।
एक सतरंज का खेल बन जाता है यह रोज का जीवन। जिसमें आपको सामने वाले के चाल का इंतजार करना पड़ता है। एक गलती आपको खेल से बाहर कर सकती है। आप दूसरे के चाल का इंतजार करते हैं, फिर अपनी चाल के लिए तैयार होते हैं। आपकी चाल ऐसी होती है कि आप जीतना नहीं चाहते, इसके अलावा आपको यह भी ध्यान रखना पड़ता है कि सामने वाला हारे भी न, आपकी चाल की वजह से।
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