रविन्द्र जैन एक ऐसा नाम जिसे भारतीय संगीत की दुनिया हमेशा याद रखेगी. सफ़र कब शुरू हुआ कैसे शुरू हुआ यह बहुत पुरानी कहानी है.
रविन्द्र जैन क्लासिकल में मॉडर्न तड़का लगा कर पेश करने में माहिर थे और सब कुछ बहुत सरलता से बेहतर बना देते थे.
कवन दिशा में ले के चला रे बटोहिया से रास्ता पूछते पूछते ये कहने लगे की जब शाम ढले आना, जब दीप जले आना... फिर इन्होंने ने एलान कर दिया कि घुँघरू की तरह बजता ही रहा हूँ मै, कभी इस पग में कभी उस पग में बंधता ही रहा हूं मै. इस गाने में दर्द था, यह गाना अपने आप में बहुत कुछ समेटे हुए है. आज भी जब यह गाना बजता है तो इस गाने से जुड़े हर एक इंसान के सच्चाई से रुबरू करता है. चाहे वो जैन साहब हो, किशोर दा हो या संजीव कुमार. इस तरह का यथार्थ केवल रविन्द्र जैन के संगीत में ही मिला. श्याम की बंशी से राधा के नाम का पुकारना हो या मीरा और राधा को श्याम का प्रेम और दर्श दीवानी बनना हो, आँखों से न देख पाने का मलाल, कृष्ण का राधा और मीरा के प्रेम से इतने खूबसूरत लय ताल से जोड़ना और नई नवेली दुल्हन का प्यार की छाव में बिठाये रखने का एतवार किसी हकीकत से कम नहीं है, नए घर में आए एक लड़की का ये कहना और अपने पति से इतना उम्मीद करना जायज भी है. यही रविन्द्र जैन कभी लड़की को बागी भी बना देते है और कहते है कि मैंने तुझे चुन लिया तू भी मुझे चुन,सुन बाबा सुन प्यार की धुन, ये प्यार की धुन है जो बहुत कुछ करने पर मजबूर कर देता है. इसी गाने में लड़की का मनोभाव का पता चलता है जब वो कहती है की कोई हसीना कदम ऐसे बढाती नहीं, मजबूर दिल से न हो तो पास आती नहीं ये दो लाइन अपने आप में एक लड़की के प्रेम रूपी मन को बहुत ही गहराई से बयां करता है. ये रविन्द्र जैन के संगीत का जादू ही कहा जायेगा जो सरलता से बहुत गंभीर बातों को लय में हम सब के लिए परोस देते थे. उनको गोरी का गांव बहुत प्यारा लगा वही पर गोरी ने कहा कि सजना है मुझे सजना के लिए. इन गानों में महिलाओं के मनोभाव को पेश करने के साथ साथ गांव को जोड़ता हुआ गीत जो सबकी जुबा पर चढ़ जाये ये रविन्द्र जैन की कलाकारी थी. रामायण की चौपाइयों से लेकर फिल्मी धुनों तक रविन्द्र जैन बिना देखे ही बहुत कुछ दिखा कर अँखियों के झरोखों से अचानक ओझल हो गए।