विकाश को आपने छोड़ा... जातीयता को आपने अपनाया....देश में बदलाव को आपने रोका... साख निर्धारण कंपनी जैसे हिंदी के शब्द आपने ईजाद किया...सरकार में किसानों का मुद्दा आपने अलग किया.... कब तक ये होता रहेगा शायद इसका भी निर्धारण सुप्रीम कोर्ट को न करना पड़े.... हम इतने हदास हो गए है जिसका कोई जवाब नहीं है.....जात-पात कभी संघ के मुद्दे रहे ही नहीं... आपने जबरदस्ती भाजपा के मुंह में ये सब डाला और संघ के मुंह में डाला... चुनावी राजनीति है जीत हार होते रहता है... पर हर एक बात के लिए मेरे मीडिया भाजपा को दोषी मत बनाओ।
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