Wednesday, October 26, 2016

दीपावली और आज के राम का कभी खत्म नहीं होने वाला वनवास

अपने इस देश में कई तरह के और कई पर्व हैं। लेकिन कुछ पर्व ऐसे हैं जिनका विशेष महत्व है। उस दिन परिवार के साथ न होना बड़ा खलता है। सिर्फ परिवार वालों को ही नहीं बल्कि आपको भी। घर से दूर रहकर अपने जीवन की दीप को जलाए रखने वाले लोग एक ऐसा वनवास काट रहे होते हैं जो कभी खत्म ही नहीं होता।

कहा जाता है कि जब भगवान राम वनवास खत्म कर और रावण को स्वर्ग सिधार कर लौटे तो अपनी राजा के लिए प्रजा ने दीपोत्सव कर उनका स्वागत किया। तभी से यह परंपरा चली आ रही है और इसी के तहत पूरे देश में हर वर्ष दीपावली का त्योहार मनाया जाता है।

मैं एक नौकरीपेशा इंसान हूं। पिछले दो सालों से मैं दिवाली दफ्तर में ही मना रहा हूं। दफ्तर में दिवाली मनाना मेरे लिए कोई ज्यादा दुखदाई नहीं होता लेकिन जब घर से मां का फोन आता है तो गला भर जाया करता है। कारण होता है मां की चिंता। घर पर पकवान बनता है, पूजा होती है लेकिन मां के मन के कोने में एक दुख दबा रहता है। वह दुख होता है बच्चों का साथ न होना। इससे ज्यादा कि आज मेरे लाल ने क्या खाया होगा,  कैसे रहा होगा, उसकी दिवाली में दीप जल रहे होंगे की नहीं। ये बात सिर्फ मां के मन में होती है। उस दिन फोन करने का मन भी नहीं करता। क्योंकि फोन करने के बाद जो दबा हुआ प्यार होता है, वह आंखों से निकलने को बेताब हो जाता है। और आप रो नहीं सकते। क्योंकि जमाने में आप एक मर्द के रूप में पहचाने जाते हैं।

राम का वनवास एक उदेश्य के साथ राजपरिवार की मजबूरियों के वजह से हुआ था। वो लौटे तो उसे पूरा करके। हमलोगों का वनवास भी एक उदेश्य के लिए होता है। लेकिन हमारा तय नहीं होता। जरूरतों के हिसाब से हमेशा हमरा वनवास खत्म भी हो जाता है पर हम पर्व, त्योहारों पर घऱ नहींं पहुंचते तो यह एक तात्कालिक वनवास की तरह हो जाता है।

उम्मीद करता हूं कि यह वनवास आगे से खत्म होगा। मां, बाप, भाई और बहन के साथ हम भी दिवाली मनाएंगे। उन खुशियों को मिलकर बांटेंगे उनके साथ जिनके लिए हम राजा और प्रजा है।

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