Thursday, February 4, 2016

now aadhar can be used as security measures

आधार के जरिए अब जल्द ही देश केे नागरिक ड्राइवरों और घरेलू नौकरों की भर्ती करने से पहले सारी जानकारी हासिल कर सकेंगे। सरकार आधार जांच का दायरा बढ़ाने की तैयारी में है। अब तक आधार के जरिए जांच का सिस्टम बैंक और कुछ सरकारी विभागों तक ही सीमित था, जिसे बढ़ाकर आम लोगों और प्राइवेट विभागों तक पहुंचाया जा रहा है।
साथ ही, यह भी सुनिश्चित किया जा रहा है कि और सुरक्षित सिस्टम के जरिए प्रइवेसी की चिंताओं को दूर किया जाए। मामूली फीस देकर लोगों के यूनिक आईडी नंबर का इस्तेमाल करते हुए उनके डीटेल्स की जांच की जा सकेगी। आधार को रियल टाइम में भी चेक किया जा सकेगा।
इस सर्विस का इस्तेमाल उन कंपनियों की तरफ से भी किया जा सकता है, जो अपने कंज्यूमर्स और स्टाफ के रिकॉर्ड की प्रामणिकता का पता लगाना चाहती हैं। एक थर्ड पार्टी एजेंसी रहेगी जो लोगों और कंपनियों के बदले जांच का काम करेगी। यह सब नरेंद्र मोदी के हालिया उस आदेश के बाद से किया जा रहा है, जिसमें उन्होंने कहा था कि आधार के इस्तेमाल का दायरा बढ़ाया जाए।
आधार से जुड़ी प्राइवेसी की चिंताओं को दूर करने के लिए नया ऑथेंटिकेशन सिस्टम ईकेवाईसी नियम से अलग तरह से काम करेगा। फिलहाल सरकारी विभाग औऱ बैंक ईकेवाईसी नियम का पालन करते हैं। ईकेवाईसी के तहत यूजर एजेंसियां किसी शख्स का आधार नंबर डालने पर सर्वर नाम, पता और बाकी डीटेल्स मुहैया कराता है, जिसे बाद में एजेंसियों द्वारा स्टोर किया जाता है। प्राइवेट कंपनियों और नागरिकों को दी जाने वाली सर्विस के तहत आधार लेटर पर मौजूद बारकोड की स्कैनिंग की जाएगी और इसमें मौजूद डेटा को वेरिफिकेशन के लिए आधार डेटाबेस भेजा जाएगा और फिर हां या ना में इसका जवाब मिलेगा। यह जांच का सबसे सुरक्षित तरीका होगा, क्योंकि इस डेटाबेस के जरिए किसी भी नागरिक के डेटा ट्रांसफर नहीं होंगे।
UIDAI के मुताबिक, कुल 300 जांच यूजर कंपनिया हैं। इससे अब तक 111 करोड़ ट्रांजेक्शन देखे गए हैं।तकरीबन 20 कंपनियों ने आधार जांच सर्विस के लिए रजामंदी जताई है, जिसमे एयरटेल, वोडाफोन और सरकारी कंपनी बीएसएनएल जैसी टेलीकॉम कंपनियों के अलावा मास्टर कार्ड और वीजा जैसी फाइनेंशियल फर्मे भी शामिल है।
इससे उन कंपनियों को सबसे ज्यादा फायदा होगा जिनके पास बड़ी संख्या में एम्पलॉयीज हैं या जो यूजर वेरिफिकेशन पर अच्छी-खासी रकम खर्च करती हैं। फाइनेंशियल फर्मे फिनोपेटिक आधार नंबर के जरिए कस्टमर्स की जांच के लिए एक ई-कॉमर्स फर्म से बात कर रही है।
शराब पीने से होने वाली मौत से परेशान एक नाई ने इससे लड़ने का अनोखा तरीका निकाला है। गांधीनगर में नाई का काम करने वाले प्रवीण मास्टर ने लोगों की शराब की आदत को छुड़वाने का दिलचस्प तरीका खोजा है। शराब और सिगरेट की आदत छोड़ने का वादा करने वालों के बाल काटने और ढाढ़ी बनाने का वह पैसा नहीं लेते हैं।इतना ही नहीं, प्रवीण लोगों से यह वादा भी करते हैं कि अगर शराब और सिगरेट 3 महीने तक छोड़ने के बाद भी उन्हें अपनी जिंदगी में सकारात्मक बदलाव महसूस नहीं हुआ तो वह खुद जिंदगी भर उनके शराब-सिगरेट का खर्च उठाएंगे। प्रवीण की उम्र मात्र 35 साल है और उन्होंने अपने 3 दोस्तों को शराब से होने वाली बीमारियों के कारम मरता हुआ देखा है।
प्रवीण अपने दोस्तों की आर्थिक तौर पर मदद करना चाहते थे, लेकिन अपनी कमजोर माली हालात के कारण ज्यादा कुछ कर नहीं सके। इसके बाद ही उन्होंने शराब-सिगरेट छोड़ने का वादा करने वाले ग्राहकों को मुफ्त सेवा देने के बारे में सोचा। 2 साल पहले उन्होंने इसपर अमल करना शुरू किया। अभी तक वह 15 लोगों की शराब और सिगरेट की लत को छुड़ा चुके हैं। इनमें कुछ लोग जहां प्रवीण को अपना डॉक्टर कहते हैं, वहीं कुछ लोग सलून को नसामुक्ति केंद्र मानते हैं।
प्रवीण ने जिन लोगों की लत छुड़ाई है, उनमें 34 साल के प्रकाश परमार भी शामुल हैं। वह कहते हैं कि प्रवीण की सलाह उनके लिए काम कर गई। प्रकाश बताते हैं कि मैंने 6 महीने से शराब- सिगरेट नहीं पीया है। मेरी परिवारिक और आर्थिक स्थिति में काफी सुधार आया है। मैंने शराब-सिगरेट इसलिए नहीं कि मुझे फ्री में बाल और ढाढ़ी कटवाना था। मैंने यह लत इसलिए छोड़ी क्योंकि प्रवीण ने मुझे एक डॉक्टर की तरह समझाया।
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chief justice of pakistan will here the petition to prove innocence of bhagat singh

शहीद भगत सिंह को निर्दोष साबित करने वाली याचिका पर सुनवाई शुरू हो गई है। हालांकि लाहौर की अदालत ने कहा है कि भगत सिंह को सजा तीन सदस्यीय खंडपीठ ने दी थी इसलिए अब दो सदस्यीय खंडपीठ इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकती है। गौरतलब है कि भगत सिंह को ब्रिटिश अधिकारी सांडर्स की हत्या में लाहौर में फांसी दी गई थी। इसके करीब 85 साल बाद लाहौर हाईकोर्ट एक याचिका के आधार पर इस मामले की सुनवाई शुरू कर रहा है। भगत सिंह को अंग्रेज सरकार ने 23 मार्च 1931 को फांसी दे दी थी। 

एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी में नहीं है भगत सिंह का नाम
2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजीशहीद भगत सिंह को निर्दोष साबित करने वाली याचिका पर सुनवाई शुरू हो गई है। हालांकि लाहौर की अदालत ने कहा है कि भगत सिंह को सजा तीन सदस्यीय खंडपीठ ने दी थी इसलिए अब दो सदस्यीय खंडपीठ इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकती है। गौरतलब है कि भगत सिंह को ब्रिटिश अधिकारी सांडर्स की हत्या में लाहौर में फांसी दी गई थी। इसके करीब 85 साल बाद लाहौर हाईकोर्ट एक याचिका के आधार पर इस मामले की सुनवाई शुरू कर रहा है। भगत सिंह को अंग्रेज सरकार ने 23 मार्च 1931 को फांसी दे दी थी।
 

एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी में नहीं है भगत सिंह का नाम
2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजी थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
शहीद भगत सिंह को निर्दोष साबित करने वाली याचिका पर सुनवाई शुरू हो गई है। हालांकि लाहौर की अदालत ने कहा है कि भगत सिंह को सजा तीन सदस्यीय खंडपीठ ने दी थी इसलिए अब दो सदस्यीय खंडपीठ इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकती है। गौरतलब है कि भगत सिंह को ब्रिटिश अधिकारी सांडर्स की हत्या में लाहौर में फांसी दी गई थी। इसके करीब 85 साल बाद लाहौर हाईकोर्ट एक याचिका के आधार पर इस मामले की सुनवाई शुरू कर रहा है। भगत सिंह को अंग्रेज सरकार ने 23 मार्च 1931 को फांसी दे दी थी।एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी में नहीं है भगत सिंह का नाम
2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजी थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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शहीद भगत सिंह को निर्दोष साबित करने वाली याचिका पर सुनवाई शुरू हो गई है। हालांकि लाहौर की अदालत ने कहा है कि भगत सिंह को सजा तीन सदस्यीय खंडपीठ ने दी थी इसलिए अब दो सदस्यीय खंडपीठ इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकती है। गौरतलब है कि भगत सिंह को ब्रिटिश अधिकारी सांडर्स की हत्या में लाहौर में फांसी दी गई थी। इसके करीब 85 साल बाद लाहौर हाईकोर्ट एक याचिका के आधार पर इस मामले की सुनवाई शुरू कर रहा है। भगत सिंह को अंग्रेज सरकार ने 23 मार्च 1931 को फांसी दे दी थी।एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी में नहीं है भगत सिंह का नाम
2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजी थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
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2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजी थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
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लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजी थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजी थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजी थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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शहीद भगत सिंह को निर्दोष साबित करने वाली याचिका पर सुनवाई शुरू हो गई है। हालांकि लाहौर की अदालत ने कहा है कि भगत सिंह को सजा तीन सदस्यीय खंडपीठ ने दी थी इसलिए अब दो सदस्यीय खंडपीठ इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकती है। गौरतलब है कि भगत सिंह को ब्रिटिश अधिकारी सांडर्स की हत्या में लाहौर में फांसी दी गई थी। इसके करीब 85 साल बाद लाहौर हाईकोर्ट एक याचिका के आधार पर इस मामले की सुनवाई शुरू कर रहा है। भगत सिंह को अंग्रेज सरकार ने 23 मार्च 1931 को फांसी दे दी थी।एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी में नहीं है भगत सिंह का नाम
2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजी थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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शहीद भगत सिंह को निर्दोष साबित करने वाली याचिका पर सुनवाई शुरू हो गई है। हालांकि लाहौर की अदालत ने कहा है कि भगत सिंह को सजा तीन सदस्यीय खंडपीठ ने दी थी इसलिए अब दो सदस्यीय खंडपीठ इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकती है। गौरतलब है कि भगत सिंह को ब्रिटिश अधिकारी सांडर्स की हत्या में लाहौर में फांसी दी गई थी। इसके करीब 85 साल बाद लाहौर हाईकोर्ट एक याचिका के आधार पर इस मामले की सुनवाई शुरू कर रहा है। भगत सिंह को अंग्रेज सरकार ने 23 मार्च 1931 को फांसी दे दी थी।एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी में नहीं है भगत सिंह का नाम
2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजी थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजी थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजी थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
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लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजी थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
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भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
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लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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शहीद भगत सिंह को निर्दोष साबित करने वाली याचिका पर सुनवाई शुरू हो गई है। हालांकि लाहौर की अदालत ने कहा है कि भगत सिंह को सजा तीन सदस्यीय खंडपीठ ने दी थी इसलिए अब दो सदस्यीय खंडपीठ इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकती है। गौरतलब है कि भगत सिंह को ब्रिटिश अधिकारी सांडर्स की हत्या में लाहौर में फांसी दी गई थी। इसके करीब 85 साल बाद लाहौर हाईकोर्ट एक याचिका के आधार पर इस मामले की सुनवाई शुरू कर रहा है। भगत सिंह को अंग्रेज सरकार ने 23 मार्च 1931 को फांसी दे दी थी।एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी में नहीं है भगत सिंह का नाम
2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजी थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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शहीद भगत सिंह को निर्दोष साबित करने वाली याचिका पर सुनवाई शुरू हो गई है। हालांकि लाहौर की अदालत ने कहा है कि भगत सिंह को सजा तीन सदस्यीय खंडपीठ ने दी थी इसलिए अब दो सदस्यीय खंडपीठ इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकती है। गौरतलब है कि भगत सिंह को ब्रिटिश अधिकारी सांडर्स की हत्या में लाहौर में फांसी दी गई थी। इसके करीब 85 साल बाद लाहौर हाईकोर्ट एक याचिका के आधार पर इस मामले की सुनवाई शुरू कर रहा है। भगत सिंह को अंग्रेज सरकार ने 23 मार्च 1931 को फांसी दे दी थी।एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी में नहीं है भगत सिंह का नाम
2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजी थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजी थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजी थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
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लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजी थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
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भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
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2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजी थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
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भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
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भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
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भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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शहीद भगत सिंह को निर्दोष साबित करने वाली याचिका पर सुनवाई शुरू हो गई है। हालांकि लाहौर की अदालत ने कहा है कि भगत सिंह को सजा तीन सदस्यीय खंडपीठ ने दी थी इसलिए अब दो सदस्यीय खंडपीठ इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकती है। गौरतलब है कि भगत सिंह को ब्रिटिश अधिकारी सांडर्स की हत्या में लाहौर में फांसी दी गई थी। इसके करीब 85 साल बाद लाहौर हाईकोर्ट एक याचिका के आधार पर इस मामले की सुनवाई शुरू कर रहा है। भगत सिंह को अंग्रेज सरकार ने 23 मार्च 1931 को फांसी दे दी थी।एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी में नहीं है भगत सिंह का नाम
2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजी थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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Wednesday, February 3, 2016

A Love Poem

आज
तुम्हें देख कर
अच्छा लगा पर
वैसा नहीं जैसे पहले लगता था।
आज
तुम बहुत दिन बाद मिली थी,
पर वैसे नहीं लगा मिल के
जैसे पहली बार में लगा था।
आज
नज़रें चुरा रही थी तुम
फिर भी मिल गई नज़र
तुमने नजरें ऐसी झुकाई
जैसे पहले मैं झुकाता था।
आज
मैं नहीं बोला तुमसे
बाते तुमने शुरू की
बड़ी घबरा कर
जैसे पहले मैं घबड़ाता था।
आज
पहली बार लगा मुझको
तुम अपने से डरी हो-मुझसे मिल कर
जैसे पहले मैं डरता था।
COPY RIGHT RESERVED

Interesting Facts About Maharana Pratap

29 जनवरी, भारत के महान योद्धा महाराणा प्रताप की पुण्यतिथि है। इसी मौके पर हम बता रहे है महाराणा प्रताप से जुड़े कुछ अनछुए पहलु के बारे में। महाराणा प्रताप के नाम से भारतीय इतिहास गुंजायमान है। यह एक ऐसे योद्धा थे जिन्होंने मुगलों को छटी का दूध याद दिला दिया था। इनकी वीरता की कथा से भारत की भूमि गौरवान्वित है। महाराणा प्रताप मेवाड़ की प्रजा के राजा थे। वर्तमान में यह क्षेत्र राजस्थान में आता है। प्रताप राजपूतों में सिसोदिया वंश के वंशज थे। राणा प्रताप एक बहादुर राजपूत थे जिन्होंने हर परिस्थिती में अपनी आखरी सांस तक अपनी प्रजा की रक्षा की। इन्होंने सदैव अपने एवं अपने परिवार से उपर प्रजा को मान और सम्मान दिया। महाराणा प्रताप एक ऐसे शासक थे जिनकी वीरता को अकबर भी सलाम करता था। महाराणा प्रताप युद्ध कौशल में तो निपूण थे ही साथ ही वे एक भावुक एवं धर्म परायण भी थे। उनकी सबसे पहली गुरु उनकी माता जयवंता बाई जी थी। महाराणा प्रताप के पिता का नाम राणा उदय सिंह था। इनकी शादी महारानी अजबदे पुनवार से हुई थी। महाराणा प्रताप और अजबेद के पुत्रों का नाम अमर सिंह और भगवान दास था। अजबदे प्रताप की पहली पत्नी थी, इसके आलावा इनकी 11 पत्नियाँ और भी थी। प्रताप के कुल 17 पुत्र एवम 5 पुत्रियां थी। जिनमे अमर सिंह सबसे बड़े थे। वे अजबदे के पुत्र थे। महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 और मृत्य 29 जनवरी 1597 को हुई थी। महाराणा प्रताप के मृत्यु के बाद अमर सिंह ने मेवाड़ की राजगद्दी संभाली थी।
महाराणा को राजा बनते नहीं देखना चाहते थे उनके सौतेले भाई
महारानी जयवंता के अलावा राणा उदय सिंह की और भी पत्नियां थी जिनमे रानी धीर बाई उदय सिंह की सबसे प्रिय पत्नी थी। रानी धीर बाई चाहती थी कि उनका पुत्र जगमाल राणा उदय सिंह का उत्तराधिकारी बने। इसके अलावा राणा उदय सिंह के दो पुत्र शक्ति सिंह और सागर सिंह भी थे। इनमे भी राणा उदय सिंह के बाद राजगद्दी संभालने की मंशा थी लेकिन प्रजा और उदय सिंह दोनों ही प्रताप को उत्तराधिकारी के तौर पर मानते थे। इसी कारण तीनो भाई प्रताप को पंसद नहीं करते थे।
प्रताप के खिलाफ था राजपूताना
अकबर के डर के कारण अथवा राजा बनने की लालसा के कारण कई राजपूतों ने स्वयं ही अकबर से हाथ मिला लिया था। इसी को हथियार बनाकर अकबर ने राणा उदय सिंह को भी अपने आधीन करना चाहा पर ऐसा हो न सका। अकबर ने राजा मान सिंह को अपने ध्वज तले सेना का सेनापति बनाया इसके आलावा तोडरमल, राजा भगवान दास सभी को अपने साथ मिलाकर 1576 में प्रताप और राणा उदय सिंह के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया। और इसी के साथ शुरू हुआ हल्दीघाटी का युद्ध।
हल्दीघाटी का युद्ध
1576 में राजा मान सिंह ने अकबर की तरफ से 5000 सैनिकों का नेतृत्व किया और हल्दीघाटी पर पहले से 3000 सैनिको को तैनात कर युद्ध का बिगुल बजाया। दूसरी तरफ अफ़गानी राजाओं ने प्रताप का साथ निभाया, इनमे हाकिम खान सुर ने प्रताप का आखरी सांस तक साथ दिया। हल्दीघाटी का यह युद्ध कई दिनों तक चला और अंत में यह युद्ध अकबर जीता नहीं और प्रताप हारे नहीं। युद्ध के बाद कई दिनों तक जंगल में जीवन जीने के बाद मेहनत के साथ प्रताप ने नया नगर बसाया जिसे चावंड नाम दिया गया। अकबर ने बहुत प्रयास किया लेकिन वो प्रताप को अपने अधीन नहीं कर सका।
महाराणा प्रताप और उनका घोड़ा चेतक
इतिहास में जितनी महाराणा प्रताप के बहादुरी की चर्चा की हुई है, उतनी ही प्रशंसा उनके घोड़े चेतक को भी मिली। कहा जाता है कि चेतक कई फीट उंचे हाथी के मस्तक तक उछल सकता था। कुछ लोकगीतों के अलावा हिंदी कवि श्यामनारायण पांडेय की वीर रस कविता चेतक की वीरता में उसकी बहादुरी की खूब तारीफ की गई है। हल्दी घाटी (1576) के युद्ध में उनके प्रिय घोड़े चेतक ने अहम भूमिका निभाई थी। हल्दी घाटी में चेतक की समाधि बनी हुई है,जहां स्वयं प्रताप और उनके भाई शक्तिसिंह ने अपने हाथों से इस अश्व का दाह-संस्कार किया था। कहा जाता है कि चेतक भी राणाप्रताप की तरह ही बहादुर था। चेतक अरबी नस्ल का घोड़ा था। चेतक लंबी-लंबी छलांगे मारने में माहिर था। फादारी के मामले में चेतक की गिनती दुनिया के सर्वश्रेष्ठ घोड़ों में की गई है। हल्दीघाटी युद्ध में प्रताप का अनूठा सहयोगी था वह। प्रताप शोध प्रतिष्ठान के मुताबिक दोनों का साथ चार साल तक रहा। कहते यहां तक हैं कि हल्दीघाटी युद्ध में चेतक, अकबर के सेनापति मानसिंह के हाथी के मस्तक की उंचाई तक तक बाज की तरह उछल गया था। फिर महाराणा ने मानसिंह पर वार किया था। जब मुगल सेना महाराणा के पीछे लगी थी,तब चेतक उन्हें अपनी पीठ पर लादकर 26 फीट लंबे नाले को लांघ गया, जिसे मुगल फौज का कोई घुड़सवार पार न कर सका। प्रताप के साथ युद्ध में घायल चेतक को वीरगति मिली थी। वह अरबी नस्ल वाला नीले रंग का घोड़ा था। राजस्थान में लोग उसे आज भी उसी सम्मान से याद करते हैं, जो सम्मान वे महाराणा को देते हैं। वीरगति के बाद महाराणा ने स्वयं चेतक का अंतिम संस्कार किया था। हल्दीघाटी में उसकी समाधि है। मेवाड़ में लोग चेतक की बाहादुरी के लोकगीत गाते हैं।
208 किलो का सुरक्षा कवच लेकर चलते थे महाराणा प्रताप
महाराणा प्रताप का भाला 81 किलो वजन का था, और उनके छाती का तवच 72 किलो का था। उनके भाले, कवच, ढ़ाल और दो तलवारों का वजन 208 किलो था।

waheeda rahman birthday.

हिन्दी फिल्मों की सदाबहार एक्ट्रेस वहीदा रहमान 3 फरवरी को 78वां जन्मदिन मना रही हैं।  अपने नाम (वहीदा) के मतलब लाजवाब को साकार करती वहीदा रहमान अपने करिश्मायी अभिनय से लगभग पांच दशक से सिनेमा प्रेमियों के दिलों पर राज कर रही हैं।
       
जन्मदिन के खास मौके पर पढे़ वहिदा के बारे नें 10 खास बातें

- वहीदा रहमान का जन्म 3 फरवरी 1938 को तमिलनाडु के चेंगलपट्टू में हुआ था। उनके पिता जिला अधिकारी थे। बचपन से ही वहीदा रहमान का रूझान नृत्य और संगीत की ओर था। पिता ने नृत्य के प्रति नन्हीं वहीदा के रूझान को पहचान कर उसे उस राह में चलने के लिये प्रेरित किया और उसे भरतनाट्यम सीखने की अनुमति दे दी।
      
-तेरह वर्ष की उम्र से वहीदा रहमान नृत्य कला में पारंगत हो गयी और स्टेज पर कार्यक्रम पेश करने लगी। फिल्म निर्माता उन्हें अपनी फिल्म में काम करने के लिये पेशकश करने लगे लेकिन उनके पिता ने फिल्म निर्माताओं की पेशकश यह कहकर ठुकरा दी कि 'वहीदा अभी बच्ची है और यह उम्र उसके पढ़ने लिखने की है।'
     
-पिता की मौत के बाद घर की आर्थिक जिम्मेदारी वहीदा पर आ गयी। पिता के एक मित्र की सहायता से वहीदा को एक तेलुगू फिल्म में काम करने का मौका मिला। फिल्म सफल रही। फिल्म में वहीदा का अभिनय दर्शकों ने काफी सराहा।

- हैदराबाद में फिल्म के प्रीमियर के दौरान निर्माता गुरूदत्त के एक फिल्म वितरक ने वहीदा को स्क्रीन टेस्ट के लिए बुलाया और अपनी फिल्म 'सीआईडी' में काम करने का मौका दिया। फिल्म निर्माण के दौरान जब गुरूदत्त ने वहीदा को नाम बदलने के लिए कहा तो वहीदा ने साफ इंकार करते हुए कहा कि उनका नाम वहीदा ही रहेगा।
           
-1957 में वहीदा को एक बार फिर से गुरूदत्त की फिल्म 'प्यासा' में काम करने का अवसर मिला। फिल्म में वहीदा रहमान ने एक वेश्या का किरदार निभाया था। गुलाबो के किरदार को वहीदा रहमान ने इतने सहज और दमदार तरीके से पेश किया कि दर्शक उनके अभिनय के कायल हो गये। 1959 में प्रदर्शित गुरूदत्त की ही फिल्म 'कागज के फूल 'में काम करने का मौका मिला।


-1960 में वहीदा की यादगार फिल्म 'चौदहवी का चांद' प्रदर्शित हुई जो रूपहले पर्दे पर सुपरहिट हुई। इस फिल्म के एक गाने ''चौदहवी का चांद हो या आफताब हो जो भी हो तुम खुदा की कसम लाजवाब हो' ने दर्शकों को वहीदा का  दीवाना बना दिया और उन्हें कहना पड़ा कि वह अपने नाम की तरह सचमुच लाजवाब है।
       
-1962 में वहीदा की 'साहब बीवी और गुलाम' प्रदर्शित हुई। 1965 में वहीदा के सिने करियर की एक और अहम फिल्म 'गाइड' प्रदर्शित हुई। अपने दमदार अभिनय से दर्शकों को अपना दीवाना बनाया बल्कि साथ ही वह सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के फिल्म फेयर पुरस्कार से भी सम्मानित की गईं।
       
-1969 में प्रदर्शित फिल्म 'खामोशी' में वहीदा के अभिनय के नये आयाम दर्शकों को देखने को मिले। सत्तर के दशक में वहीदा रहमान ने चरित्र भूमिका निभानी शुरू कर दी। इन फिल्मों में 'अदालत', 'कभी कभी', 'त्रिशूल', 'नमक हलाल', 'हिम्मतवाला', 'कुली', 'मशाल', 'अल्लाह रखा', 'चांदनी और लम्हें' प्रमुख है।
-इसके बाद वहीदा ने लगभग 12 वर्ष तक फिल्म इंडस्ट्री से किनारा कर लिया। वर्ष 2001 में वहीदा ने अपने करियर की नयी पारी शुरू की और 'ओम जय जगदीश', 'वाटर', 'रंग दे बसंती', 'दिल्ली 6' जैसी फिल्मों से दर्शकों का मन मोहा। अपने जीवन के 75 से भी ज्यादा बसंत देख चुकी वहीदा रहमान आज भी उसी जोशो खरोश के साथ अपने किरदार को निभाती हैं।

YAHOO PLANNING TO CUT IN NUMBER OF EMPLOYEE, MERISA MAYOR POSITION IS IN DANGER.

कैलिफोर्निया। अपने बिजनेस के सबसे खराब दौर से गुजर रही कंपनी याहू अब विवाद में भी घिर गई है। याहू की सीईओ मेरिसा मेयर ने अपनी जॉब बचाने के लिए करीब 1700 इम्प्लॉइज को निकालने का प्लान बनाया है। अपने स्ट्रैटेजिक प्लान के तहत मेरिसा पांच फॉरेन ऑफिस को बंद कर बिजनेस का कुछ हिस्सा भी बेचना चाहती हैं। कंपनी को 2015 की आखिरी तिमाही में 4.4 बिलियन डॉलर का लॉस हुआ है और याहू के टॉप एग्जीक्यूटिव में से कुछ ने जॉब छोड़ दी है इसके चलते शेयर होल्डर्स में काफी नाराजगी है। शेयर होल्टर्स मेरिसा मेयर को सीईओ पोजिशन से हटाने की मांग कर रहे थे। इससे ये साफ जाहिर है कि अपनी नौकरी बचाने के लिए मेयर इतने लोगों को नौकरी से निकाल रही हैं।
मेयर का स्ट्रैटेजिक प्लान
याहू 2016 के अंत तक दुबई (यूएई), मैक्सिको सिटी, ब्यूनस आयर्स (अर्जेंटीना), मैड्रिड (स्पेन) और मिलान (इटली) के अपने ऑफिस बंद कर देगी। इम्प्लॉइज की संख्या में 15 पर्सेंट की कटौती करके इसे 9,000 तक लाने का प्लान है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2014 में याहू के फुल टाइम इम्प्लॉइज की संख्या 12,500 थी, जो लगातार कम होती जा रही है। 1,000 से ज्यादा लोगों के कॉन्ट्रैक्ट भी रद्द किए जाने की संभावना है।
इम्प्लॉई रैकिंग सिस्टम में गड़बड़ी की आशंका
कंपनी के इम्प्लॉई रैकिंग सिस्टम के खिलाफ याहू के ही पूर्व एडिटर ग्रेगोरी एंडरसन ने कैलिफोर्निया के फेडरल डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में याचिका दायर की है। याहू ने उन्हें नंवबर 2014 में जॉब से निकाल दिया था। यह टर्मिनेशन इम्प्लॉई रैंकिंग सिस्टम के नाम पर हुआ है। इसे मेरिसा मेयर की स्पेशल पॉलिसी माना जा रहा है। इसमें इम्प्लाइज को परफॉर्मेंस के अनुसार 1-5 रैकिंग दी जाती है। यह रिव्यू हर तीन महीने में होता है। जिनका परफॉर्मेंस लगातार ठीक नहीं रहता उनको निकाल कंपनी से निकाल दिया जाता है।
इम्प्लॉइज को निकालना पड़ सकता है भारी
एक साथ इतने सारे इम्प्लॉइज को निकालना इलीगल मास लेऑफ के अंडर आता है। कैलिफोर्निया लॉ के मुताबिक, 50 से अधिक इम्प्लॉइज को 30 दिन से कम समय में निकालने से पहले कंपनी को 60 दिन का एडवांस नोटिस देना पड़ता है। उसने 2014 के आखिर से 2015 के शुरुआत तक करीब 1100 इम्प्लॉइज को परफॉर्मेंस के बेस पर बाहर कर दिया। अगर कोर्ट याहू को इस मामले में दोषी पाता है तो उसे निकाले गए कर्मचारियों को 500 डॉलर और नोटिस के पहले तक दिए जाने वाले सभी बेनिफिट्स देने होंगे।
कौन हैं मेरिसा मेयर ?
41 साल की मेरिसा मेयर अमरीकन बिजनेस एग्जीक्यूटिव और कम्प्यूटर साइंटिस्ट हैं। 2012 से वे याहू की सीईओ हैं। याहू आने से पहले वे लंबे समय तक गूगल से जुड़ी रही। 2014 में फॉर्च्यून 40 की लिस्ट में वे छठे रैंक पर थीं। साथ ही फॉर्च्यून ने उन्हें दुनिया की 16वीं सबसे पावरफुल वुमन बताया था। वही अखबार द न्यूयॉर्क टाइम्स और मैगजीन द न्यूयॉर्कर ने मेयर को उनके मैनेजमेंट डिसीजन के चलते जमकर क्रिटिसाइज किया था।

THE WHOLE PROCESS ABOUT AMERICAN PRESIDENTIAL ELECTION.

जानिए अमरीकी चुनाव के प्रक्रिया के बारे में


अमरीका पर इन दिनों चुनावी रंग चढ़ा है और आयोवा राज्य से अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया औपचारिक तौर पर शुरू हो चुकी है.
राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों का चुनाव इस प्रक्रिया का पहला पड़ाव है.
पार्टियों की कई बैठकें होती हैं. इसमें गहन विचार-विमर्श और लंबी वोटिंग प्रक्रिया के बाद डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवारों का चयन किया जाता है.

जानिए अमरीका के राष्ट्रपति चुनाव के उम्मीदवार चुनने की प्रक्रिया

उम्मीदवारों का चयन कुछ राज्यों में प्राइमरी चुनावों से होता है तो कुछ राज्यों में कॉकस बैठकों के ज़रिए.
अमरीका के हर राज्य में रहने वाले अमरीकी ही नहीं, बल्कि विदेश में रहने वाले अमरीकी भी, दोनों मुख्य पार्टी के उम्मीदवारों का चयन प्राइमरी या फिर कॉकस प्रक्रिया के तहत करते हैं.
फिर विजेता उम्मीदवार अपने प्रतिनिधियों को पार्टी कन्वेंशन या सम्मेलन में जमा करते हैं. ये प्रतिनिधि आमतौर पर पार्टी के ही सदस्य होते हैं जिन्हें पार्टी कन्वेंशन में उम्मीदवार के पक्ष में वोट देने का अधिकार होता है. इसके बाद आख़िर में पार्टी औपचारिक तौर पर राष्ट्रपति पद के लिए अपने उम्मीदवार के नाम का एलान करती है.


अब सवाल ये उठता है कि कॉकस और प्राइमरी में क्या अंतर होता है?

कॉकस में पार्टी के सदस्य जमा होते हैं. स्कूलों में, घरों में या फिर सार्वजनिक स्थलों पर उम्मीदवार के नाम पर चर्चा की जाती है जिसके बाद वहां मौजूद लोग हाथ उठाकर उम्मीदवार का चयन करते हैं.
वहीं प्राइमरी में बैलट के ज़रिया मतदान होता है और मत पत्र बाक़ायदा बॉक्स में डाले जाते हैं. हर राज्य के नियमों के हिसाब से वहां पर अलग-अलग तरह से प्राइमरी होती है.
1. ओपन प्राइमरी: इसमें किसी भी राज्य के सभी रजिस्टर्ड वोटर, वोट कर सकते हैं और वो किसी भी उम्मीदवार को वोट कर सकते हैं.
मसलन किसी राज्य का रिपबल्किन वोटर डेमोक्रेट प्राइमरी में वोट डाल सकता है और डेमोक्रेट वोटर रिपब्लिकन प्राइमरी में.
2. सेमी क्लोज़्ड प्राइमरी: इसमें सिर्फ़ पार्टी के रजिस्टर्ड वोटर ही प्राइमरी में हिस्सा लेते हैं. लेकिन इसमें निर्दलीय मतदाताओं (इंडिपेंडेंट वोटर्स) को वोटिंग का अधिकार होता है. न्यू हैंपशायर राज्य में सेमी क्लोज़्ड प्राइमरी होती है.
3. क्लोज़्ड प्राइमरी: इसमें सिर्फ़ पार्टी विशेष से जुड़े रजिस्टर्ड वोटर ही अपनी पार्टी के प्राइमरी चुनाव में वोट कर सकते हैं.

कॉकस प्रक्रिया भी हर राज्य के क़ानून के हिसाब से अलग-अलग होती है.

डेमोक्रेटिक कॉकस में वोटर सार्वजनिक सभा में समूहों में बंट जाते हैं और अलग-अलग कोनों में जमा होकर उम्मीदवार और प्रतिनिधियों के प्रति अपना समर्थन व्यक्त करते हैं.
रिपब्लिकन कॉकस में गुप्त मतदान के ज़रिए प्रतिनिधियों को चुना जाता है.


लेकिन ये प्रतिनिधि (डेलीगेट्स) कौन होते हैं?

प्राइमरी और कॉकस में सीधे राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को नहीं चुना जाता. पार्टी की बैठक में ये काम प्रतिनिधियों का होता है.
ये प्रतिनिधि पार्टी के ही सदस्य होते हैं जो अपने उन उम्मीदवारों के लिए वोट करते हैं जिनका चयन प्राइमरीज़ में किया जाता है.
ऐसा भी मुमकिन है कि कोई उम्मीदवार पार्टी की उम्मीदवारी हासिल करने के लिए ज़रूरी प्रतिनिधियों का समर्थन हासिल ही ना कर पाए.
इस स्थिति में पार्टी के कई सम्मेलन होते हैं और फिर प्रतिनिधियों की वोटिंग के बाद उम्मीदवार का नाम तय किया जाता है.
वैसे अमूमन ऐसा होता नहीं है.एक बार उम्मीदवार का नाम तय होने के बाद पार्टी ज़ोर शोर से उसके चुनाव अभियान में लग जाती है.

चुनावी प्रक्रिया आयोवा और न्यू हैंपशायर से क्यों शुरू होती है?

इसकी कोई ख़ास वजह नहीं है.
इस बार आयोवा में पहली फ़रवरी को कॉकस हो चुका है जबकि न्यू हैंपशायर में यह नौ फ़रवरी को होना है.
आयोवा में डेमोक्रेट पार्टी की तरफ से हिलेरी क्लिंटन के समर्थकों ने जीत का दावा किया है जबकि रिपब्लिकन उम्मीदारी की रेस में अब तक आगे चल रहे डोनाल्ड ट्रंप को झटका देते हुए सीनेटर टेड क्रूज़ ने सफलता हासिल की.
आयोवा और न्यू हैंपशायर, दोनों ही छोटे राज्य हैं. यहां की आबादी में 94 फ़ीसदी गोरे हैं जबकि पूरे अमरीका में गोरी आबादी 77 फ़ीसदी है.
अगर कोई उम्मीदवार आयोवा और न्यू हैंपशायर में जीत भी जाता है तो भी यह तय नहीं है कि उसे पार्टी की उम्मीदवारी मिल ही जाएगी.
लेकिन यहां सबसे पहले कॉकस या प्राइमरी होता है इसलिए इसे क़रीब से देखा जाता है क्योंकि इन दो राज्यों में मिली जीत आगे की चुनावी मुहिम पर ख़ासा असर डालती है.


बीबीसी की कैटी के कहती हैं, "आयोवा और न्यू हैंपशायर में अच्छा प्रदर्शन आगे की लड़ाई तय कर सकता है. यहां पर जीत के बाद उम्मीदवारों को ज़बरदस्त मीडिया कवरेज मिलने लगती है. इस वजह से उन्हें भरपूर प्रायोजक भी मिलने लगते हैं. आख़िर विजेता पर कौन अपना पैसा नहीं लगाना चाहता?"
अमरीकी चुनाव में 'सुपर ट्यूज़डे' भी एक बेहद अहम शब्द है.
ये वो दिन है जब कई राज्य एक साथ प्राइमरी या कॉकस करवाते हैं.
फ़रवरी 2008 में, 24 राज्यों ने एक साथ 'सुपर-डूपर ट्यूज़डे' में हिस्सा लिया था, जबकि 2012 में 10 राज्यों ने.
इस बार एक मार्च को 'सुपर ट्यूज़डे' होगा जब 16 अमरीकी राज्यों में प्राइमरी चुनाव या कॉकस एक साथ होंगे.
कॉकस और प्राइमरी गर्मियों तक जारी रहेंगे. फिर जुलाई में पार्टियों की राष्ट्रीय बैठक में औपचारिक तौर पर प्रतिनिधियों का चुनाव किया जाएगा.
उम्मीदवारी हासिल करने के लिए रिपब्लिकन उम्मीदवार को 1236 प्रतिनिधियों (डेलीगेट्स) और डेमोक्रेटिक उम्मीदवार को 2383 प्रतिनिधियों (डेलीगेट्स) का समर्थन चाहिए.


सोर्स-बीबीसी हिन्दी

Former Loksabha Speaker Balram Jakhar No More, Read Facts About His Life

पूर्व लोकसभा स्पीकर, मध्य प्रदेश के पूर्व राज्यपाल और पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी बलराम जाखड़ को भारतीय राजनीतिक जगत में अपनी पैठ और खास पहचान रखने के लिए याद किया जाएगा। डॉ. बलराम जाखड़ ने बुधवार को 92 बसंत देखने के बाद दिल्ली में आखिरी सांस ली, वे लंबे समय से बीमार चल रहे थे। जमीन और मुद्दों की जड़ों से जुड़े सर्वमान्य नेता बलराम जाखड़ के जीवन से जुड़ी कुछ बाते हम आपको बता रहे हैं जो आपको जरूर जानना चाहिए।

पांच भाषाएं जानते थे जाखड़
उनका जन्म 23 अगस्त 1923 को तत्कालीन पंजाब में फजिल्का (अब अबोहर) जिले के पंचकोसी गांव में हुआ था। वह जाखड़ वंश के जाट परिवार में पैदा हुए थे। उनके पिता का नाम चौधरी राजाराम जाखड़ और मां का नाम पातोदेवी जाखड़ था। बलराम जाखड़ ने 1945 में फोरमैन क्रिश्चियन कॉलेज, लाहौर (अब पाकिस्तान) से संस्कृत में डिग्री प्राप्त की। इसके अलावा उन्हें अंग्रेजी, हिंदी, उर्दू और पंजाबी भाषा का भी अच्छा ज्ञान था।

दो बार रहे लोकसभा स्पीकर
साल 1972 में विधानसभा में चयनित होने के साथ बलराम जाखड़ के राजनैतिक जीवन की शुरूआत हुई। 1977 में दोबारा जीत दर्ज करने के बाद उन्हें नेता विपक्ष का पद मिला फिरोजपुर संसदीय क्षेत्र से साल 1980 में सातवीं लोकसभा के लिए चुने जाने के बाद बलराम जाखड़ को लोकसभा अध्यक्ष बनाया गया। अगली बार आठवीं लोकसभा चुनावों में भी वह सीकर संसदीय क्षेत्र से चुनकर आए और दोबारा लोकसभा स्पीकर बने। साल 1980 से 1989 तक लोकसभा अध्यक्ष रहने के दौरान उन्होंने लोकसभा की लाइब्रेरी विकसित की और रिसर्च को बढ़ावा दिया। पार्लियामेंट से जुड़ी चीजों का म्यूजियम, तथ्यों का कंप्यूटराइजेशन, मशीनों का ऑटोमेशन वगैरह करवाने में उनकी बड़ी भूमिका रही।

राष्ट्रमंडल सांसद कार्यकारी फोरम के पहले एशियाई सभापति
डॉ. बलराम जाखड़ एशियाई मूल के पहले ऐसे व्यक्ति थे, जिन्हें राष्ट्रमंडल सांसद कार्यकारी फोरम के सभापति के रूप में चयनित किया गया।

एमपी में राजनीतिक उठापटक के गवाह रहे थे जाखड़
1991 में बलराम जाखड़ केंद्रीय कृषि मंत्री भी बनाए गए। इसके अलावा वह 30 जून, 2004 से 30 मई, 2009 तक मध्य प्रदेश के राज्यपाल के रूप में भी एक सफल कार्यकाल पूरा किया। मध्यप्रदेश के राज्यपाल रहते हुए उन्होंने कई राजनीतिक उठापटक भरे दिन भी देखे।  उन दिनों भाजपा नेत्री उमा भारती प्रदेश की मुख्यमंत्री थीं। अगस्त 2004 में कर्नाटक के हुबली में सांप्रदायिक झगड़े के आरोप में तत्कालीन मुख्यमंत्री उमा भारती के खिलाफ वारंट जारी हो गया। जिसके बाद उमा ने बलराम जाखड़ को इस्तीफा सौंप दिया था। उमा भारती के बाद भाजपा नेतृत्व ने गृहमंत्री बाबूलाल गौर को प्रदेश के मुख्यमंत्री के योग्य माना और राज्यपाल बलराम जाखड़ ने गौर को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई। हालांकि, गौर भी ज्यादा दिनों तक मुख्यमंत्री नहीं रह सके। भारतीय जनता पार्टी में चल रहे आंतरिक घमासान के बाद शिवराज सिंह चौहान की प्रदेश के मुख्यमंत्री पद पर ताजपोशी की गई। इस पूरे घटनाचक्र के तत्कालीन राज्यपाल बलराम जाखड़ गवाह रहे थे।

किसानी करने के शौकीन थे जाखड़
पेशे से कृषक और बागवानी करने के शौकीन रहे बलराम जाखड़ पीपुल, पार्लियामेंट और एडमिनिस्ट्रेशन नाम की एक किताब के लेखक भी रहे। वर्ष 1975 में बागवानी की प्रक्रिया को सशक्त बनाने के कारण भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति ने बलराम जाखड़ को उद्यान पंडित की उपाधि से नवाजा था। इसके अलावा कई यूनिवर्सिटी ने भी उन्हें कृषि जगत में योगदान के लिए सम्मानित किया था।

परिवार भी राजनीति में
डॉ. बलराम जाखड़ के दोनों बेटे राजनीति में शामिल हुए। बड़े बेटे सज्जन कुमार जाखड़ पंजाब के पूर्व मंत्री हैं। दूसरे बेटे सुरिंदर कुमार जाखड़ की गोली लगने से 17 जनवरी 2011 को फिरोजपुर में मौत हो गई।

गौरतलब है कि 92 वर्षीय कांग्रेस नेता बलराम जाखड़ लंबे समय से ब्रेन स्ट्रोक की बीमारी से जूझ  रहे थे। उनके पार्थिव शरीर को पंजाब के अबोहर ले जाया जाएगा, जहां उनके पैतृक गांव पंचकोशी में गुरूवार को अंतिम संस्कार होगा।

Life, shayari

एक गुजरा जमाना हैं हम लोग
याद रखना एक फसाना हैं हम लोग।