शहीद भगत सिंह को निर्दोष
साबित करने वाली याचिका पर सुनवाई शुरू हो गई है। हालांकि लाहौर की अदालत
ने कहा है कि भगत सिंह को सजा तीन सदस्यीय खंडपीठ ने दी थी इसलिए अब दो
सदस्यीय खंडपीठ इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकती है। गौरतलब है कि भगत सिंह
को ब्रिटिश अधिकारी सांडर्स की हत्या में लाहौर में फांसी दी गई थी। इसके
करीब 85 साल बाद लाहौर हाईकोर्ट एक याचिका के आधार पर इस मामले की सुनवाई
शुरू कर रहा है। भगत सिंह को अंग्रेज सरकार ने 23 मार्च 1931 को फांसी दे
दी थी।
एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी में नहीं है भगत सिंह का नाम
2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजीशहीद भगत सिंह को निर्दोष साबित करने वाली याचिका पर सुनवाई शुरू हो गई है। हालांकि लाहौर की अदालत ने कहा है कि भगत सिंह को सजा तीन सदस्यीय खंडपीठ ने दी थी इसलिए अब दो सदस्यीय खंडपीठ इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकती है। गौरतलब है कि भगत सिंह को ब्रिटिश अधिकारी सांडर्स की हत्या में लाहौर में फांसी दी गई थी। इसके करीब 85 साल बाद लाहौर हाईकोर्ट एक याचिका के आधार पर इस मामले की सुनवाई शुरू कर रहा है। भगत सिंह को अंग्रेज सरकार ने 23 मार्च 1931 को फांसी दे दी थी।
एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी में नहीं है भगत सिंह का नाम
2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजी थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था। थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी में नहीं है भगत सिंह का नाम
2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजीशहीद भगत सिंह को निर्दोष साबित करने वाली याचिका पर सुनवाई शुरू हो गई है। हालांकि लाहौर की अदालत ने कहा है कि भगत सिंह को सजा तीन सदस्यीय खंडपीठ ने दी थी इसलिए अब दो सदस्यीय खंडपीठ इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकती है। गौरतलब है कि भगत सिंह को ब्रिटिश अधिकारी सांडर्स की हत्या में लाहौर में फांसी दी गई थी। इसके करीब 85 साल बाद लाहौर हाईकोर्ट एक याचिका के आधार पर इस मामले की सुनवाई शुरू कर रहा है। भगत सिंह को अंग्रेज सरकार ने 23 मार्च 1931 को फांसी दे दी थी।
एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी में नहीं है भगत सिंह का नाम
2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजी थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था। थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
शहीद
भगत सिंह को निर्दोष साबित करने वाली याचिका पर सुनवाई शुरू हो गई है।
हालांकि लाहौर की अदालत ने कहा है कि भगत सिंह को सजा तीन सदस्यीय खंडपीठ
ने दी थी इसलिए अब दो सदस्यीय खंडपीठ इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकती है।
गौरतलब है कि भगत सिंह को ब्रिटिश अधिकारी सांडर्स की हत्या में लाहौर में
फांसी दी गई थी। इसके करीब 85 साल बाद लाहौर हाईकोर्ट एक याचिका के आधार पर
इस मामले की सुनवाई शुरू कर रहा है। भगत सिंह को अंग्रेज सरकार ने 23
मार्च 1931 को फांसी दे दी थी।एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी में नहीं है भगत सिंह का नाम
2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजी थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजी थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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शहीद
भगत सिंह को निर्दोष साबित करने वाली याचिका पर सुनवाई शुरू हो गई है।
हालांकि लाहौर की अदालत ने कहा है कि भगत सिंह को सजा तीन सदस्यीय खंडपीठ
ने दी थी इसलिए अब दो सदस्यीय खंडपीठ इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकती है।
गौरतलब है कि भगत सिंह को ब्रिटिश अधिकारी सांडर्स की हत्या में लाहौर में
फांसी दी गई थी। इसके करीब 85 साल बाद लाहौर हाईकोर्ट एक याचिका के आधार पर
इस मामले की सुनवाई शुरू कर रहा है। भगत सिंह को अंग्रेज सरकार ने 23
मार्च 1931 को फांसी दे दी थी।एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी में नहीं है भगत सिंह का नाम
2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजी थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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भगत सिंह को निर्दोष साबित करने वाली याचिका पर सुनवाई शुरू हो गई है।
हालांकि लाहौर की अदालत ने कहा है कि भगत सिंह को सजा तीन सदस्यीय खंडपीठ
ने दी थी इसलिए अब दो सदस्यीय खंडपीठ इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकती है।
गौरतलब है कि भगत सिंह को ब्रिटिश अधिकारी सांडर्स की हत्या में लाहौर में
फांसी दी गई थी। इसके करीब 85 साल बाद लाहौर हाईकोर्ट एक याचिका के आधार पर
इस मामले की सुनवाई शुरू कर रहा है। भगत सिंह को अंग्रेज सरकार ने 23
मार्च 1931 को फांसी दे दी थी।एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी में नहीं है भगत सिंह का नाम
2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजी थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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भगत सिंह को निर्दोष साबित करने वाली याचिका पर सुनवाई शुरू हो गई है।
हालांकि लाहौर की अदालत ने कहा है कि भगत सिंह को सजा तीन सदस्यीय खंडपीठ
ने दी थी इसलिए अब दो सदस्यीय खंडपीठ इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकती है।
गौरतलब है कि भगत सिंह को ब्रिटिश अधिकारी सांडर्स की हत्या में लाहौर में
फांसी दी गई थी। इसके करीब 85 साल बाद लाहौर हाईकोर्ट एक याचिका के आधार पर
इस मामले की सुनवाई शुरू कर रहा है। भगत सिंह को अंग्रेज सरकार ने 23
मार्च 1931 को फांसी दे दी थी।एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी में नहीं है भगत सिंह का नाम
2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजी थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजी थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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शहीद
भगत सिंह को निर्दोष साबित करने वाली याचिका पर सुनवाई शुरू हो गई है।
हालांकि लाहौर की अदालत ने कहा है कि भगत सिंह को सजा तीन सदस्यीय खंडपीठ
ने दी थी इसलिए अब दो सदस्यीय खंडपीठ इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकती है।
गौरतलब है कि भगत सिंह को ब्रिटिश अधिकारी सांडर्स की हत्या में लाहौर में
फांसी दी गई थी। इसके करीब 85 साल बाद लाहौर हाईकोर्ट एक याचिका के आधार पर
इस मामले की सुनवाई शुरू कर रहा है। भगत सिंह को अंग्रेज सरकार ने 23
मार्च 1931 को फांसी दे दी थी।एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी में नहीं है भगत सिंह का नाम
2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजी थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजी थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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शहीद
भगत सिंह को निर्दोष साबित करने वाली याचिका पर सुनवाई शुरू हो गई है।
हालांकि लाहौर की अदालत ने कहा है कि भगत सिंह को सजा तीन सदस्यीय खंडपीठ
ने दी थी इसलिए अब दो सदस्यीय खंडपीठ इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकती है।
गौरतलब है कि भगत सिंह को ब्रिटिश अधिकारी सांडर्स की हत्या में लाहौर में
फांसी दी गई थी। इसके करीब 85 साल बाद लाहौर हाईकोर्ट एक याचिका के आधार पर
इस मामले की सुनवाई शुरू कर रहा है। भगत सिंह को अंग्रेज सरकार ने 23
मार्च 1931 को फांसी दे दी थी।एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी में नहीं है भगत सिंह का नाम
2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजी थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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भगत सिंह को निर्दोष साबित करने वाली याचिका पर सुनवाई शुरू हो गई है।
हालांकि लाहौर की अदालत ने कहा है कि भगत सिंह को सजा तीन सदस्यीय खंडपीठ
ने दी थी इसलिए अब दो सदस्यीय खंडपीठ इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकती है।
गौरतलब है कि भगत सिंह को ब्रिटिश अधिकारी सांडर्स की हत्या में लाहौर में
फांसी दी गई थी। इसके करीब 85 साल बाद लाहौर हाईकोर्ट एक याचिका के आधार पर
इस मामले की सुनवाई शुरू कर रहा है। भगत सिंह को अंग्रेज सरकार ने 23
मार्च 1931 को फांसी दे दी थी।एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी में नहीं है भगत सिंह का नाम
2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजी थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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भगत सिंह को निर्दोष साबित करने वाली याचिका पर सुनवाई शुरू हो गई है।
हालांकि लाहौर की अदालत ने कहा है कि भगत सिंह को सजा तीन सदस्यीय खंडपीठ
ने दी थी इसलिए अब दो सदस्यीय खंडपीठ इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकती है।
गौरतलब है कि भगत सिंह को ब्रिटिश अधिकारी सांडर्स की हत्या में लाहौर में
फांसी दी गई थी। इसके करीब 85 साल बाद लाहौर हाईकोर्ट एक याचिका के आधार पर
इस मामले की सुनवाई शुरू कर रहा है। भगत सिंह को अंग्रेज सरकार ने 23
मार्च 1931 को फांसी दे दी थी।एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी में नहीं है भगत सिंह का नाम
2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजी थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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भगत सिंह को निर्दोष साबित करने वाली याचिका पर सुनवाई शुरू हो गई है।
हालांकि लाहौर की अदालत ने कहा है कि भगत सिंह को सजा तीन सदस्यीय खंडपीठ
ने दी थी इसलिए अब दो सदस्यीय खंडपीठ इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकती है।
गौरतलब है कि भगत सिंह को ब्रिटिश अधिकारी सांडर्स की हत्या में लाहौर में
फांसी दी गई थी। इसके करीब 85 साल बाद लाहौर हाईकोर्ट एक याचिका के आधार पर
इस मामले की सुनवाई शुरू कर रहा है। भगत सिंह को अंग्रेज सरकार ने 23
मार्च 1931 को फांसी दे दी थी।एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी में नहीं है भगत सिंह का नाम
2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजी थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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भगत सिंह को निर्दोष साबित करने वाली याचिका पर सुनवाई शुरू हो गई है।
हालांकि लाहौर की अदालत ने कहा है कि भगत सिंह को सजा तीन सदस्यीय खंडपीठ
ने दी थी इसलिए अब दो सदस्यीय खंडपीठ इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकती है।
गौरतलब है कि भगत सिंह को ब्रिटिश अधिकारी सांडर्स की हत्या में लाहौर में
फांसी दी गई थी। इसके करीब 85 साल बाद लाहौर हाईकोर्ट एक याचिका के आधार पर
इस मामले की सुनवाई शुरू कर रहा है। भगत सिंह को अंग्रेज सरकार ने 23
मार्च 1931 को फांसी दे दी थी।एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी में नहीं है भगत सिंह का नाम
2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजी थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजी थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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शहीद
भगत सिंह को निर्दोष साबित करने वाली याचिका पर सुनवाई शुरू हो गई है।
हालांकि लाहौर की अदालत ने कहा है कि भगत सिंह को सजा तीन सदस्यीय खंडपीठ
ने दी थी इसलिए अब दो सदस्यीय खंडपीठ इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकती है।
गौरतलब है कि भगत सिंह को ब्रिटिश अधिकारी सांडर्स की हत्या में लाहौर में
फांसी दी गई थी। इसके करीब 85 साल बाद लाहौर हाईकोर्ट एक याचिका के आधार पर
इस मामले की सुनवाई शुरू कर रहा है। भगत सिंह को अंग्रेज सरकार ने 23
मार्च 1931 को फांसी दे दी थी।एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी में नहीं है भगत सिंह का नाम
2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजी थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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शहीद
भगत सिंह को निर्दोष साबित करने वाली याचिका पर सुनवाई शुरू हो गई है।
हालांकि लाहौर की अदालत ने कहा है कि भगत सिंह को सजा तीन सदस्यीय खंडपीठ
ने दी थी इसलिए अब दो सदस्यीय खंडपीठ इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकती है।
गौरतलब है कि भगत सिंह को ब्रिटिश अधिकारी सांडर्स की हत्या में लाहौर में
फांसी दी गई थी। इसके करीब 85 साल बाद लाहौर हाईकोर्ट एक याचिका के आधार पर
इस मामले की सुनवाई शुरू कर रहा है। भगत सिंह को अंग्रेज सरकार ने 23
मार्च 1931 को फांसी दे दी थी।एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी में नहीं है भगत सिंह का नाम
2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजी थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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भगत सिंह को निर्दोष साबित करने वाली याचिका पर सुनवाई शुरू हो गई है।
हालांकि लाहौर की अदालत ने कहा है कि भगत सिंह को सजा तीन सदस्यीय खंडपीठ
ने दी थी इसलिए अब दो सदस्यीय खंडपीठ इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकती है।
गौरतलब है कि भगत सिंह को ब्रिटिश अधिकारी सांडर्स की हत्या में लाहौर में
फांसी दी गई थी। इसके करीब 85 साल बाद लाहौर हाईकोर्ट एक याचिका के आधार पर
इस मामले की सुनवाई शुरू कर रहा है। भगत सिंह को अंग्रेज सरकार ने 23
मार्च 1931 को फांसी दे दी थी।एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी में नहीं है भगत सिंह का नाम
2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजी थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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भगत सिंह को निर्दोष साबित करने वाली याचिका पर सुनवाई शुरू हो गई है।
हालांकि लाहौर की अदालत ने कहा है कि भगत सिंह को सजा तीन सदस्यीय खंडपीठ
ने दी थी इसलिए अब दो सदस्यीय खंडपीठ इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकती है।
गौरतलब है कि भगत सिंह को ब्रिटिश अधिकारी सांडर्स की हत्या में लाहौर में
फांसी दी गई थी। इसके करीब 85 साल बाद लाहौर हाईकोर्ट एक याचिका के आधार पर
इस मामले की सुनवाई शुरू कर रहा है। भगत सिंह को अंग्रेज सरकार ने 23
मार्च 1931 को फांसी दे दी थी।एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी में नहीं है भगत सिंह का नाम
2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजी थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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भगत सिंह को निर्दोष साबित करने वाली याचिका पर सुनवाई शुरू हो गई है।
हालांकि लाहौर की अदालत ने कहा है कि भगत सिंह को सजा तीन सदस्यीय खंडपीठ
ने दी थी इसलिए अब दो सदस्यीय खंडपीठ इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकती है।
गौरतलब है कि भगत सिंह को ब्रिटिश अधिकारी सांडर्स की हत्या में लाहौर में
फांसी दी गई थी। इसके करीब 85 साल बाद लाहौर हाईकोर्ट एक याचिका के आधार पर
इस मामले की सुनवाई शुरू कर रहा है। भगत सिंह को अंग्रेज सरकार ने 23
मार्च 1931 को फांसी दे दी थी।एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी में नहीं है भगत सिंह का नाम
2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजी थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजी थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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शहीद
भगत सिंह को निर्दोष साबित करने वाली याचिका पर सुनवाई शुरू हो गई है।
हालांकि लाहौर की अदालत ने कहा है कि भगत सिंह को सजा तीन सदस्यीय खंडपीठ
ने दी थी इसलिए अब दो सदस्यीय खंडपीठ इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकती है।
गौरतलब है कि भगत सिंह को ब्रिटिश अधिकारी सांडर्स की हत्या में लाहौर में
फांसी दी गई थी। इसके करीब 85 साल बाद लाहौर हाईकोर्ट एक याचिका के आधार पर
इस मामले की सुनवाई शुरू कर रहा है। भगत सिंह को अंग्रेज सरकार ने 23
मार्च 1931 को फांसी दे दी थी।एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी में नहीं है भगत सिंह का नाम
2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजी थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजी थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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शहीद
भगत सिंह को निर्दोष साबित करने वाली याचिका पर सुनवाई शुरू हो गई है।
हालांकि लाहौर की अदालत ने कहा है कि भगत सिंह को सजा तीन सदस्यीय खंडपीठ
ने दी थी इसलिए अब दो सदस्यीय खंडपीठ इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकती है।
गौरतलब है कि भगत सिंह को ब्रिटिश अधिकारी सांडर्स की हत्या में लाहौर में
फांसी दी गई थी। इसके करीब 85 साल बाद लाहौर हाईकोर्ट एक याचिका के आधार पर
इस मामले की सुनवाई शुरू कर रहा है। भगत सिंह को अंग्रेज सरकार ने 23
मार्च 1931 को फांसी दे दी थी।एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी में नहीं है भगत सिंह का नाम
2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजी थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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भगत सिंह को निर्दोष साबित करने वाली याचिका पर सुनवाई शुरू हो गई है।
हालांकि लाहौर की अदालत ने कहा है कि भगत सिंह को सजा तीन सदस्यीय खंडपीठ
ने दी थी इसलिए अब दो सदस्यीय खंडपीठ इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकती है।
गौरतलब है कि भगत सिंह को ब्रिटिश अधिकारी सांडर्स की हत्या में लाहौर में
फांसी दी गई थी। इसके करीब 85 साल बाद लाहौर हाईकोर्ट एक याचिका के आधार पर
इस मामले की सुनवाई शुरू कर रहा है। भगत सिंह को अंग्रेज सरकार ने 23
मार्च 1931 को फांसी दे दी थी।एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी में नहीं है भगत सिंह का नाम
2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजी थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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भगत सिंह को निर्दोष साबित करने वाली याचिका पर सुनवाई शुरू हो गई है।
हालांकि लाहौर की अदालत ने कहा है कि भगत सिंह को सजा तीन सदस्यीय खंडपीठ
ने दी थी इसलिए अब दो सदस्यीय खंडपीठ इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकती है।
गौरतलब है कि भगत सिंह को ब्रिटिश अधिकारी सांडर्स की हत्या में लाहौर में
फांसी दी गई थी। इसके करीब 85 साल बाद लाहौर हाईकोर्ट एक याचिका के आधार पर
इस मामले की सुनवाई शुरू कर रहा है। भगत सिंह को अंग्रेज सरकार ने 23
मार्च 1931 को फांसी दे दी थी।एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी में नहीं है भगत सिंह का नाम
2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजी थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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भगत सिंह को निर्दोष साबित करने वाली याचिका पर सुनवाई शुरू हो गई है।
हालांकि लाहौर की अदालत ने कहा है कि भगत सिंह को सजा तीन सदस्यीय खंडपीठ
ने दी थी इसलिए अब दो सदस्यीय खंडपीठ इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकती है।
गौरतलब है कि भगत सिंह को ब्रिटिश अधिकारी सांडर्स की हत्या में लाहौर में
फांसी दी गई थी। इसके करीब 85 साल बाद लाहौर हाईकोर्ट एक याचिका के आधार पर
इस मामले की सुनवाई शुरू कर रहा है। भगत सिंह को अंग्रेज सरकार ने 23
मार्च 1931 को फांसी दे दी थी।एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी में नहीं है भगत सिंह का नाम
2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजी थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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भगत सिंह को निर्दोष साबित करने वाली याचिका पर सुनवाई शुरू हो गई है।
हालांकि लाहौर की अदालत ने कहा है कि भगत सिंह को सजा तीन सदस्यीय खंडपीठ
ने दी थी इसलिए अब दो सदस्यीय खंडपीठ इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकती है।
गौरतलब है कि भगत सिंह को ब्रिटिश अधिकारी सांडर्स की हत्या में लाहौर में
फांसी दी गई थी। इसके करीब 85 साल बाद लाहौर हाईकोर्ट एक याचिका के आधार पर
इस मामले की सुनवाई शुरू कर रहा है। भगत सिंह को अंग्रेज सरकार ने 23
मार्च 1931 को फांसी दे दी थी।एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी में नहीं है भगत सिंह का नाम
2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजी थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजी थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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शहीद
भगत सिंह को निर्दोष साबित करने वाली याचिका पर सुनवाई शुरू हो गई है।
हालांकि लाहौर की अदालत ने कहा है कि भगत सिंह को सजा तीन सदस्यीय खंडपीठ
ने दी थी इसलिए अब दो सदस्यीय खंडपीठ इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकती है।
गौरतलब है कि भगत सिंह को ब्रिटिश अधिकारी सांडर्स की हत्या में लाहौर में
फांसी दी गई थी। इसके करीब 85 साल बाद लाहौर हाईकोर्ट एक याचिका के आधार पर
इस मामले की सुनवाई शुरू कर रहा है। भगत सिंह को अंग्रेज सरकार ने 23
मार्च 1931 को फांसी दे दी थी।एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी में नहीं है भगत सिंह का नाम
2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजी थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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शहीद
भगत सिंह को निर्दोष साबित करने वाली याचिका पर सुनवाई शुरू हो गई है।
हालांकि लाहौर की अदालत ने कहा है कि भगत सिंह को सजा तीन सदस्यीय खंडपीठ
ने दी थी इसलिए अब दो सदस्यीय खंडपीठ इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकती है।
गौरतलब है कि भगत सिंह को ब्रिटिश अधिकारी सांडर्स की हत्या में लाहौर में
फांसी दी गई थी। इसके करीब 85 साल बाद लाहौर हाईकोर्ट एक याचिका के आधार पर
इस मामले की सुनवाई शुरू कर रहा है। भगत सिंह को अंग्रेज सरकार ने 23
मार्च 1931 को फांसी दे दी थी।एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी में नहीं है भगत सिंह का नाम
2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजी थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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भगत सिंह को निर्दोष साबित करने वाली याचिका पर सुनवाई शुरू हो गई है।
हालांकि लाहौर की अदालत ने कहा है कि भगत सिंह को सजा तीन सदस्यीय खंडपीठ
ने दी थी इसलिए अब दो सदस्यीय खंडपीठ इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकती है।
गौरतलब है कि भगत सिंह को ब्रिटिश अधिकारी सांडर्स की हत्या में लाहौर में
फांसी दी गई थी। इसके करीब 85 साल बाद लाहौर हाईकोर्ट एक याचिका के आधार पर
इस मामले की सुनवाई शुरू कर रहा है। भगत सिंह को अंग्रेज सरकार ने 23
मार्च 1931 को फांसी दे दी थी।एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी में नहीं है भगत सिंह का नाम
2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजी थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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भगत सिंह को निर्दोष साबित करने वाली याचिका पर सुनवाई शुरू हो गई है।
हालांकि लाहौर की अदालत ने कहा है कि भगत सिंह को सजा तीन सदस्यीय खंडपीठ
ने दी थी इसलिए अब दो सदस्यीय खंडपीठ इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकती है।
गौरतलब है कि भगत सिंह को ब्रिटिश अधिकारी सांडर्स की हत्या में लाहौर में
फांसी दी गई थी। इसके करीब 85 साल बाद लाहौर हाईकोर्ट एक याचिका के आधार पर
इस मामले की सुनवाई शुरू कर रहा है। भगत सिंह को अंग्रेज सरकार ने 23
मार्च 1931 को फांसी दे दी थी।एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी में नहीं है भगत सिंह का नाम
2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजी थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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भगत सिंह को निर्दोष साबित करने वाली याचिका पर सुनवाई शुरू हो गई है।
हालांकि लाहौर की अदालत ने कहा है कि भगत सिंह को सजा तीन सदस्यीय खंडपीठ
ने दी थी इसलिए अब दो सदस्यीय खंडपीठ इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकती है।
गौरतलब है कि भगत सिंह को ब्रिटिश अधिकारी सांडर्स की हत्या में लाहौर में
फांसी दी गई थी। इसके करीब 85 साल बाद लाहौर हाईकोर्ट एक याचिका के आधार पर
इस मामले की सुनवाई शुरू कर रहा है। भगत सिंह को अंग्रेज सरकार ने 23
मार्च 1931 को फांसी दे दी थी।एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी में नहीं है भगत सिंह का नाम
2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजी थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजी थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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शहीद
भगत सिंह को निर्दोष साबित करने वाली याचिका पर सुनवाई शुरू हो गई है।
हालांकि लाहौर की अदालत ने कहा है कि भगत सिंह को सजा तीन सदस्यीय खंडपीठ
ने दी थी इसलिए अब दो सदस्यीय खंडपीठ इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकती है।
गौरतलब है कि भगत सिंह को ब्रिटिश अधिकारी सांडर्स की हत्या में लाहौर में
फांसी दी गई थी। इसके करीब 85 साल बाद लाहौर हाईकोर्ट एक याचिका के आधार पर
इस मामले की सुनवाई शुरू कर रहा है। भगत सिंह को अंग्रेज सरकार ने 23
मार्च 1931 को फांसी दे दी थी।एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी में नहीं है भगत सिंह का नाम
2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजी थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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2014 में लाहौर पुलिस ने 1928 में सॉन्डर्स की हुई हत्या की एफआईआर की ओरिजिनल कॉपी मुहैया कराई थी। इस कॉपी में भगत सिंह का नाम नहीं है, जबकि इसी मामले में उन्हें फांसी दी गई थी। लाहौर पुलिस ने अनारकली पुलिस स्टेशन से कोर्ट के आदेश के बाद सॉन्डर्स की हत्या में दर्ज हुई एफआईआर की कॉपी खोजी थी। यह उर्दू में लिखी गई थी। मामला 17 दिसंबर 1928 को शाम 4.30 बजे अनारकली पुलिस स्टेशन पर दर्ज हुआ था। यह केस आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 190 के तहज दर्ज किया गया था। पिटीशन लगाने वाले वकील कुरैशी ने कहा है कि ट्रिब्यूनल के स्पेशल जज ने भगत सिंह को जब फांसी की सजा सुनाई, तब इस मामले के 450 गवाहों को नहीं सुना गया। भगत सिंह के वकीलों को दलील का मौका तक नहीं दिया गया था।
भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा
भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के चेयरमैन वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने नवंबर में कोर्ट में इस केस पर सुनवाई के लिए पिटीशन दाखिल की थी। कुरैशी ने कहा है कि भगत सिंह फ्रीडम फाइटर थे और उन्होंने आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ी थी। पिटीशन में उन्हें बेगुनाह एलान करने की मांग की गई है। कुरैशी का कहना है कि मैं सॉन्डर्स की हत्या में भगत सिंह को बेगुनाह साबित करके रहूंगा।
अब तक कोर्ट में क्या हुआ?
लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इजाजुल अहसान ने जस्टिस खालिद महमूद खान की अगुआई में दो डिविजन बेंच बनाई है। आखिरी सुनवाई जस्टिस शुजात अली खान ने मई 2013 में की थी। तब उन्होंने केस को चीफ जस्टिस के पास बड़ी बेंच बनाने के लिए भेजा था।
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